11 वें अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2025 का विषय है ‘एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य के लिए योग अर्थात योग के माध्यम से विश्व के समग्र कल्याण और पर्यावरण के साथ सदभाव तथा नीले ग्रह के हितों को अपने दैनिक जीवन में सुरक्षा, तथा संरक्षण प्रदान करते हुए, सतत, समावेशी विकास को बढ़ावा देना है। प्रथम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून 2015, ‘योग फार हार्मनी एंड पीस’ को केंद्र में रखकर मनाया गया और यहीं से वैश्विक स्तर पर योग को अपने की प्रक्रिया और भी सुदृढ तथा मजबूत हुई। वर्तमान में योग एक वैश्विक आंदोलन बनता जा रहा है जो आज विभिन्न संस्कृतियों को एकता के सूत्र में पिरों रहा है।
योग शरीर व चेतना के मिलन का द्योतक है। योग की वैचारिक विस्तृत है, योग मात्र आसान और प्राणायाम तक सीमित नहीं है बल्कि यह जीवन जीने की एक पद्धति है। आत्मबोध तथा स्व से परिचित होने का ढंग है तथा स्वयं में निहित सत्य की खोज है। ध्यान, प्राणायाम और आसान रूपी त्रिरत्न मनोदैहिक स्वास्थ्य के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है। योग ने मानवता की आध्यात्मिक तथा नैतिक उत्थान में उत्कृष्ट योगदान दिया है
योग और सभ्यता सहजीवी है परंतु आज के डिजिटल और भौतिकवादी युग में जहां व्यक्तिवादिता चरम पर है, बाजारबाद, व्यक्तिगत स्वार्थ, लाभ और लोभ के कारण समाज में नैतिक मूल्यों और मानदंडों का क्षरण हो रहा है । आध्यात्मिक मूल्यों के नए अर्थ गढ़े और लगाए जा रहे हैं तथा जीवन पद्धति तीव्र गति से बदल रही है और इन सभी के परिणाम स्वरूप जो नए जीवन मूल्य उभर रहे हैं वे अधिक भौतिकतावादी तथा उपभोक्तावादी, व कम स्वास्थ्य तथा पर्यावरण हितैषी हैं। इन आधुनिक मूल्यों तथा डिजिटल होती जीवन शैली के मध्य मनोदैहिक स्वास्थ्य कहीं न कहीं उपेक्षित हो रहा है, ऐसे में समूचा विश्व स्वास्थ्य के लिए नियमित योग और योगाभ्यास के लाओं को महसूस कर रहा है तथा नीले ग्रह की सुरक्षा, संरक्षण के लिए प्रयासरत हो रहा है।
इस डिजिटल युग में विज्ञान और तकनीकी ने जिन भौतिकतावादी मूल्यों को जन्म दिया है वें प्रकृति से द्वंद पर आधारित हैं जो एक ऐसी कृत्रिम पारिस्थितिकी तथा कृत्रिम ताने-बाने से निर्मित हैं जो मानव जाति के जीवन शैली को तीव्र गति से परिवर्तित कर रहे हैं तथा कृत्रिमता की ओर अग्रसर कर रहा हैं। जिसके परिणाम स्वरूप- पर्यावरण प्रदूषण, जैव विविधता का ह्रास ग्रीनहाउस गैसों का बढ़ता स्तर, विभिन्न तरीके की पर्यावरण से संबंधित समस्याएं, जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाले संकट तथा ऊर्जा संकट यह सभी सम्मिलित रूप से पृथ्वी के स्वास्थ्य और हितों के अनुकूल नहीं है, ऐसे में मानव जाति को यह ध्यान देना होगा कि यदि विश्व समुदाय स्वस्थ, सुरक्षित और दीर्घ जौवी होना चाहता है तो उसे नीले ग्रह के हितों के अनुकूल जीवन शैली में बदलाव लाना होगा जो योग के माध्यम से संभव है। वैश्विक महामारी कोविद-19 में योग की उपादेयता तथा मानव जाति के लिए योग और इसकी आवश्यकता तथा स्वस्थ पर्यावरण के महत्व को रेखांकित किया है तथा मानव जीवन में स्वस्थ पर्यावरण की अनिवार्यता को सिद्ध किया है।
आसान और प्राणायाम मनोदैहिक स्वास्थ्य को संतुलित व स्वस्थ रखते हैं। इससे शरीर में ऑक्सीजन का परिसंचरण ठीक रहता है तथा कॉर्टिसोल काम बनते हैं, जिस से तनाव प्रबंधन में सहायता मिलती है और मूड ठीक रहता है तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। योग तथा प्राणायाम के नियमित अभ्यास से एक तरफ जहां शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकलने में सहायता मिलती है, तो वहीं दूसरी तरफ शरीर में ऊर्जा का संचार होता है और नर्वस सिस्टम ठीक रहता है। योग, आसन, ध्यान व प्राणायाम से उच्च रक्तचाप नियंत्रित होता है, पाचन तंत्र ठीक रहता है तथा मांसपेशियां सुदृढ़ होती हैं और हृदय की गति तथा श्वास के स्तर संतुलित होते हैं। योग और प्राणायाम से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है साथ ही साथ शांति व आनंद की प्राप्ति होती है इतना ही नहीं मानव जीवन के चरम लक्ष्य की प्राप्ति भी योग साधना से पूर्ण होती है। इसके लिए आवश्यक है कि
योग को अपने दैनिक जीवन में सम्मिलित किया जाए तथा योग सिखाने वाले विशेषज्ञों के निगरानी में ही योग किया जाए।
वर्तमान में भारत जनसंख्या लाभांश की स्थिति से गजर रहा है और इसमें एक बड़ा भाग यवाओं का है। जिनकी स्वस्थ जीवन शैली पर आत्मनिर्भर और विकसित भारत का भविष्य निर्भर करता है परंतु मनोवैज्ञानिक दबाव, तीव्र प्रतिस्पर्धा तथा भौतिकतावादी संस्कृति ने युवाओं में तनाव, कंठा, चिड़चिडापन व नकारात्मकता का बीजारोपण किया है जिन्हें नियमित आसन, ध्यान व प्राणायाम रूपी संजीवनी को जीवन का अंग बनाकर नियमित योगाभ्यास से आधुनिक नकारात्मक परिवेश को उन्मूलित किया जा सकता है। आवश्यकता है योग और प्राणायाम को डिजिटल होती जन-सामान्य की दिनचर्या में पहुंच व पैठ बनाने की जिससे की संपूर्ण विश्व में शांति सदभाव, एकीकरण व वसुधैव कुटुंबकम का मार्ग प्रशस्त्र हो तथा प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा का मूल तत्व योग विश्व को अपने प्रकाश पंज से आलोकित करत रहे।
आज के डिजिटल युग में एक स्वास्थ्य आंदोलन के रूप में योग की उपादेयता और स्वीकार्यता वैश्विक पटेल पर निरंतर बढ़ रही है। साथ ही बढ़ रही है योग सिखाने वाले विशेषर्जी की मांग इससे योग के क्षेत्र में करियर केअवसर भी बढ़ रहे हैं। योग ने सांस्कृतिक एकीकरण और सामाजिक समरसता को बढ़ावा दिया है। योग से लोक जीवन अर्थात ग्रामीण समाज भी निरंतर प्रभावित हो रहा है तथा योग के प्रति उनकी उन्मुक्तता निरंतर मुखरित हो रही है और इस रूप में योग निरंतर जन-सामान्य तक अपनी पहुंच बना रहा है। योग से जीवन शैली जन्य रोगों के प्रबंधन में सहायता मिल सकती है तथा ईर्ष्या, विषाद, कुटिलता और अवसाद जैसे मानसिक व्याधियों में भी सहायक सिद्ध हो सकता है। योग और योगाभ्यास के नियमित प्रयोग से बुजुर्गों के स्वास्थ्य में सुधार, उनकी स्मरण शक्ति, नींद वह मुड की स्थिति में सुधार दृष्टिगत हुए हैं। आवश्यकता इस बात की है कि योगाभ्यास के दौरान सकारात्मक विचार रखें। इतना ही नहीं नियमित योगाभ्यास बुढ़ापे की गति को शिथिल करता है जो संभवतः प्रत्येक मनुष्य की लालसा होती है। शरीर के आंतरिक अंगों की शुद्धि के लिए नियमित योग अभ्यास एवं प्राणायाम ही एकमात्र अनिवार्य साधन है। योग व प्राणायाम के निरंतर अभ्यास से मन को शांति मिलती है तथा एकाग्रता, ध्यान व स्वास्थ्य के स्तर में सुधार होता है। नियमित योगाभ्यास से शरीर में लचीलापन, शक्ति में बढ़ोतरी, सहनशीलता एवं संतुलन के स्तर में सुधार होता है तथा ध्यान को केंद्रित करने में सहायता मिलती है। योग मानसिक स्वास्थ्य के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है। योगाभ्यास के लिए सुबह का समय खाली पेट उत्कृष्ट माना गया है। योगाभ्यास के दौरान शीघ्रता तथा हठ पूर्वक व जबरदस्ती योगिक क्रियाएं करने से बचना चाहिए तथा शरीर की सह सीमा तक ही योग अभ्यास करना चाहिए। इस प्रकार योग स्व और अन्य से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करता है इससे एक तरफ जहां भारतीय दर्शन की भावना वसुधैव कुटुंबकम चरितार्थ होती है वहीं दूसरी तरफ वैश्विक एकता को बढ़ावा मिलता है।

असिस्टेंट प्रोफेसर (समाजशास्त्र विभाग)
रमाबाई राजकीय महिला पी.जी. कॉलेज,
अकबरपुर, अंबेडकरनगर (उत्तर प्रदेश)