नसो में पहुंच रहा प्लास्टिक

प्लास्टिक प्रदूषण एक गंभीर पर्यावरणीय संकट का रूप लेता जा रहा है, जिसको दृष्टिगत रखते हुए इस वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस की थीम है “प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करना”। प्लास्टिक के सूक्ष्म कण अर्थात माइक्रो प्लास्टिक व्यापक रूप से आज पृथ्वी, जल, वायु, मिट्टी, पर्यावरण और अंततः मानव स्वास्थ्य सभी को प्रभावित कर रहे हैं। यदि दृष्टिपात किया जाए तो, ड्राइंग रूम से लेकर वॉशरूम तक, किचन से लेकर बेडरूम तक, घरों में पानी के टंकी से लेकर आरो वाटर तक, प्लास्टिक बैग रैपिंग पेपर से लेकर वीड्स युक्त सौंदर्य उत्पाद तक, सजावटी सामानों से लेकर बच्चों के खिलौने तक, वास्तविकता तो यह है कि हम चतुर्दिक प्लास्टिक से घिरे हुए हैं। बढ़ती उपभोक्तावादी प्रवृत्ति तथा ऑनलाइन रिटेल और फूड डिलीवरी एप्स की लोकप्रियता, प्लास्टिक को बढ़ाने  में योगदान कर रही हैं। इन सभी में माइक्रो प्लास्टिक की उपस्थिति होती है। प्लास्टिक युक्त उत्पाद कहीं से भी इको फ्रेंडली नहीं है और इससे पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है तथा सतत विकास के लक्ष्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। अब प्रश्न उठता है कि माइक्रो प्लास्टिक क्या है?

माइक्रो प्लास्टिक प्लास्टिक के छोटे टुकड़े होते हैं, जो 5 मिलीमीटर से कम आकार के होते हैं।  माइक्रो प्लास्टिक के सूक्ष्म कण प्लास्टिक के उत्पादों के विघटन से बनते हैं, जैसे कि प्लास्टिक की बोतलें, प्लास्टिक के बैग और प्लास्टिक के अन्य उत्पाद। आज जब हम प्लास्टिक युक्त जीवन जी रहे हैं तो ऐसे में मानव स्वास्थ्य पर माइक्रो प्लास्टिक का क्या प्रभाव पड़ रहा है यह एक यक्ष प्रश्न है?

मनुष्य के शरीर में माइक्रो प्लास्टिक के उपस्थिति के संकेत मिले हैं, विशेष रूप से फेफड़ों, रक्त, स्तन के दूध, प्लेसेंटा और मस्तिष्क में ।शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययनों में  पाया है कि माइक्रो प्लास्टिक मानव शरीर के विभिन्न हिस्सों में भी पाए जाते हैं, जिनमें हृदय, यकृत और गुर्दे भी सम्मिलित हैं। इतना ही नहीं  माइक्रो प्लास्टिक पाचन तंत्र में पहुँचकर पाचन तंत्र को नुकसान पहुँचा सकता है। माइक्रो प्लास्टिक रक्त परिसंचरण तंत्र में पहुँचकर रक्त को प्रदूषित कर सकता है। यह लाल रक्त कोशिकाओं के बाहरी झिल्लियों से चिपक सकता है और ऑक्सीजन के परिसंचरण की क्षमता को सीमित कर सकता है। माइक्रो प्लास्टिक मानव कोशिकाओं को हानि पहुंचा सकते हैं। माइक्रो प्लास्टिक शरीर में पहुंचकर कैंसर और अन्य बीमारियों का कारण बन सकते है। माइक्रो प्लास्टिक की शरीर में पहुंच से मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है, जैसे कि तनाव, चिंता और अवसाद। माइक्रो प्लास्टिक तथा हृदय संबंधी बीमारियों के बीच संबंध पाया गया है। माइक्रो प्लास्टिक आंतों के माइक्रोबायोम में परिवर्तन का कारण बन सकते हैं, जिससे विभिन्न गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल लक्षण हो सकते हैं। कुछ अध्ययनों में माइक्रोप्लास्टिक और प्रजनन क्षमता के बीच संबंध भी पाया गया है और माइक्रो प्लास्टिक गर्भवती महिलाओं के प्लेसेंटा में भी पाए गए हैं।  माइक्रोप्लास्टिक से ध्यानाभाव/अति सक्रियता विकार जैसी स्वास्थ्य समस्याएं जन्म ले सकती हैं। 

अब प्रश्न उठता है कि जो माइक्रो प्लास्टिक मानव जीवन पर्यावरण और परिवेश के लिए इतना हानिकारक है वह मानव शरीर में प्रवेश कैसे कर रहा? माइक्रो प्लास्टिक की पर्यावरण में उपस्थिति,  सांसों के द्वारा माइक्रो प्लास्टिक  शरीर में प्रविष्टि कर सकता है। भोजन और पेय पदार्थों में मौजूद माइक्रो प्लास्टिक निगलने के माध्यम से शरीर में अपनी पहुंच बना सकते हैं। कुछ सौंदर्य प्रसाधनों और व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों में भी माइक्रो प्लास्टिक होते हैं ऐसे में उनके उपयोग से वह मानव शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। इतना ही नहीं पानी, जैसे कि पीने के पानी और समुद्र के पानी में भी माइक्रो प्लास्टिक पाए गए हैं।

अध्ययनों में पाया गया है कि  बच्चों के प्लास्टिक टिफिन और पानी के बोतल माइक्रो प्लास्टिक के स्रोत हो सकते हैं। ये प्लास्टिक उत्पाद अक्सर पॉलीप्रोपाइलीन (पीपी), पॉलीइथिलीन (पीई) और पॉलीविनाइल क्लोराइड (पीवीसी) जैसे प्लास्टिक सामग्री से बनाए जाते हैं। भारत में प्लास्टिक कचरे की समस्या एक गंभीर मुद्दा बनता जा रहा है। नेचर जर्नल के अध्ययन और सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी)  2025 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत प्रतिवर्ष लगभग 9.3 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करता है ।

भारत में प्लास्टिक कचरे के उत्पादन में महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु राज्यों का योगदान सबसे अधिक है, जो कुल प्लास्टिक कचरे में 38 प्रतिशत का योगदान करते हैं। नगरीय क्षेत्र के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी प्लास्टिक कचरे की समस्या बढ़ रही है, ग्रामीण क्षेत्रों में भी प्रतिदिन लगभग 0.3 से 0.4 लाख टन कचरा उत्पन्न होता है। उत्पन्न होने वाले कुल प्लास्टिक कचरे के केवल 30 प्रतिशत कचरे का ही पुनर्चक्रण हो पता है तथा 40 प्रतिशत प्लास्टिक कचरा संग्रहित ही नहीं किया जाता। भारत में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन लगभग 8 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष है।

माइक्रो प्लास्टिक से मानव स्वास्थ्य और मानव जीवन को कैसे सुरक्षित किया जाए इस संदर्भ में कुछ प्रयास किए जा सकते हैं। इसके लिए ‘प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन अधिनियम 2016, राष्ट्रीय स्वच्छता नीति, सिंगल यूज प्लास्टिक पर कार्यवाही की जा रही है। इसके तहत सिंगल यूज प्लास्टिक की उत्पादन, बिक्री और उपयोग की 19 वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाया गया है। उत्तर प्रदेश में  प्लास्टिक मुक्त अभियान  6 जून 2022 से ‘मेरा प्लास्टिक मेरी जिम्मेदारी’ के साथ प्रारंभ हुआ, जिसका उद्देश्य एकल प्लास्टिक उपयोग को समाप्त करना, ग्रामीण स्वच्छता में सुधार तथा पर्यावरण अनुकूल गांव को बनाना है। पर्यावरण हितैषी अन्य सुझाव इस प्रकार है- प्लास्टिक के बजाय स्टेनलेस स्टील या ग्लास के उत्पादों का उपयोग करें। कभी भी प्लास्टिक उत्पादों को उच्च तापमान पर न धोएं। प्लास्टिक उत्पादों को नियमित रूप से बदलते रहे तथा बच्चों को प्लास्टिक उत्पादों के साथ खेलने से रोकें।

प्लास्टिक बैग के बजाय कपड़े के बैग के उपयोग की आदत डालें। प्लास्टिक के उत्पादों के बजाय इको-फ्रेंडली उत्पादों को जीवन शैली का अंग बनाएं । प्लास्टिक कचरे को अलग करें इन्हें  जलाने या मिट्टी में दबाने के बजाय रिसाइकल के लिए दें। प्लास्टिक से बने कपड़े और अन्य उत्पादों को धोने से पहले उन्हें अच्छी तरह से साफ करें पुनः उन्हें धोकर ही उपयोग करें।  माइक्रो प्लास्टिक के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए सामुदायिक कार्यक्रमों चलाए जाए तथा जागरूकता बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग किया जा सकता है। जिससे कि प्लास्टिक के उपयोग को सीमित  तथा  प्लास्टिक कचरे का उचित ढंग से निपटान किया जा सके।‘बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन’ के संकल्प के साथ प्लास्टिक पॉल्यूशन के स्रोतों पर प्रहार करना होगा तभी हम माइक्रो प्लास्टिक का वास्तविक धरातल पर समाधान कर जल, मिट्टी ,पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को सतत विकास के पथ पर अग्रसर कर विकसित भारत के निर्माण में योगदान कर पाएंगे।

सीता पांडेय
(असिस्टेंट प्रोफेसर, समाजशास्त्र)
रमाबाई राजकीय महिला पीजी कॉलेज,
अकबरपुर, अम्बेडकरनगर।

Vikas Gupta

Managing Editor

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