
गोरखपुर। महर्षि पाराशर ज्योतिष संस्थान ट्रस्ट के संस्थापक ज्योतिषाचार्य पं.राकेश पाण्डेय ने बताया कि एकादशी के सूर्योदय से द्वादशी के सूर्योदय तक जल न ग्रहण करने के कारण इसे निर्जला एकादशी कहते हैं। वर्ष की चौबीस एकादशियों में से ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी सर्वोत्तम मानी गयी है। इस वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी तिथि का व्रत शुक्रवार को है। इस एकादशी का व्रत रखने से सभी एकादशियों के व्रतों के फल की प्राप्ति सहज ही प्राप्त हो जाती है।
ज्योतिषाचार्य राकेश पाण्डेय ने बताया कि ज्येष्ठ माह के दिन बड़े होते है, दूसरे गर्मी की अधिकता के कारण बार-बार प्यास लगती है क्योंकि इस दिन जल नहीं पिया जाता। इसलिए यह व्रत अत्यधिक श्रम-साध्य होने के साथ-साथ कष्ट एवं संयम-साध्य भी है। जल पान के निषिद्ध होने पर भी इस व्रत में फलाहार के पश्चात दूध पीने का विधान है। इस दिन व्रत करने वाले को चाहिए की वह जल से कलश को भरे। उस पर सफ़ेद वस्त्र से ढक्कन रखें। उस के ऊपर शर्करा तथा यथा सम्भव दक्षिणा रखकर ब्राह्मणों को संकल्प कर दान दें।
इस एकादशी का व्रत करके यथा संभव अन्न, छतरी, पंखी तथा फलादि का दान करना चाहिए। इस दिन निर्जल व्रत करते हुए शेषशायी रूप में भगवान विष्णु की आराधना का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन विधि पूर्वक जल कलश का दान करने वालों को वर्ष भर की एकादशियों का फल प्राप्त हो जाता है। इस प्रकार के दान-भाव में, “सर्वभूत हिते रताः” की भावना चरितार्थ होती है।
इसी व्रत को करके भीमसेन ने दश हजार हाथियों का बल प्राप्त कर दुर्योधन के ऊपर विजय प्राप्त की। यह व्रत बाल वृद्ध और रोगी को नहीं करना चाहिए। आज के परिवेश में जहा जल ही जीवन है एसा कहा जाता है जल के बिना अगर प्राण संकट में हो जाये तो “ॐ नमो: नारायणाय” मंत्र का 12 बार जप करके थाली में जल रखकर घुटने और भुजा को जमीन पर लगाकर पशुवत जल पी लेना चाहिए इससे व्रत भंग नहीं होता है।
मन वचन व कर्म की पवित्रता रखते हुए इस व्रत को करते हुए दूसरे दिन द्वादशी तिथि में भगवान विष्णु का पूजन करने के पश्चात् पारणा करना चाहिए जो इस वर्ष शनिवार को सूर्योदय के पश्चात् प्रातः10:00 बजे के पूर्व पारणा कर सकते है।