
गोरखपुर। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग में ‘एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य के लिए योग’ विषय पर सात दिवसीय ऑनलाइन वैल्यू एडेड कोर्स का आयोजन किया गया, जहां बुधवार को चौथा एवं पाँचवा सत्र आयोजित किया गया। पहले सत्र में बंध, मुद्रा एवं योग प्रवाह विषय पर व्याख्यान दिया गया। इस सत्र के वक्ता महायोगी गुरु श्रीगोरक्षनाथ शोधपीठ के रिसर्च एसोसिएट डॉ. सुनील कुमार रहे। उन्होंने प्राण की अवधारणा, प्राण प्रवाह, नाड़ी, चक्र, कुण्डलिनी पर विस्तृत रूप से चर्चा किया। उन्होंने अपने सम्बोधन में बताया कि योग साधना के सूत्र मन, प्राण एवं बिन्दु है। मन को लेकर राजयोग की साधना की जाती है। प्राण को लेकर हठयोग की साधना तथा बिन्दु को लेकर तंत्र की साधना आगे बढ़ती है। प्राण सभी ऊर्जा का स्रोत है। इस प्राण की प्रणाली का विकास नाथ योगियों ने किया है। कार्यक्रम का संचालन डॉ. संजय कुमार तिवारी ने किया. वहीं, धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रमेश चंद ने किया।

इसके बाद पांचवे सत्र में ‘दार्शनिक परामर्श की अधरभूमि के रूप में योग दर्शन’ विषय पर व्याख्यान दिया गया, इस सत्र के वक्ता लखनऊ विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग के सह आचार्य डॉ. प्रशांत शुक्ला रहे। डॉ. प्रशांत शुक्ला ने बताया कि योग दार्शनिक परामर्श की अधारभूमि है। दार्शनिक परामर्श मनोवैज्ञानिक परामर्श से भिन्न है। नैतिकता तथा आध्यात्मिकता से संबंधित समस्याएं दार्शनिक परामर्श के अंतर्गत आती है। योग द्वारा इसका निराकरण आसानी से किया जा सकता है। कार्यक्रम का संचालन डॉ. संजय कुमार तिवारी ने किया। वहीं, धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सुनील कुमार ने किया। व्याख्यान में डॉ. संजय कुमार राम, दीपक कुमार गुप्ता समेत अन्य विश्वविद्यालय के शिक्षक, शोधार्थी, विद्यार्थी एवं प्रतिभागी उपस्थित रहे।