
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के शरीर में अनगिनत बदलाव होते हैं बल्कि यूं कहना ठीक रहेगा कि इसकी शुरुआत गर्भधारण से पहले ही हो जाती है इन्हें अंग्रेजी भाषा में अली प्रेगनेंसी सिंपटम्स कहा जाता है जिसमें उनका मासिक धर्म रुक जाता है और असामान्य थकान महसूस होती है। स्तन पहले से नरम हो जाते हैं और उनका जी मचलता है। अच्छी बात यह है कि इन सिपटम्स से गर्भधारण करने वाली मां को ज्यादा परेशानी नहीं उठानी पढ़ती है। असली दिक्कत तो गर्भधारण करने के बाद शुरू होती है, जो महिलाए योग या अन्य शारिरिक परिश्रमसे दूर रहती है उन्हें इन दिक्कतों का सामना गर्भधारण से लेकर डिलीवरी के बाद तक करना होता है। ऐसी कौन सी शारीरिक बदलाव होते है जिनसे महिलाओं को जूझना पड़ता है और योग कैसे मदद करता है। स्तनों से लेकर प्रजनन नलिका योनी (वजाइना) तक शरीर के सभी अंगों को गर्भावस्था में बदलाव से गुजरना पडता है यह समय मां बनने वाली महिलाओं के लिए चुनौतियों से भरा होता है ऐसा समझ लिया जाए कि एक और मां का शरीर बाहर से संभालती है ताकि बच्चे को चोट लग जाए और दूसरी ओर शरीर के अंदरूनी अंगों को एडजस्ट करना पड़ता है ताकि गर्भाशय में पल रहा बच्चा अच्छे से बढ़ सके पर वह एक चीज नहीं समझते हैं कि जिस शरीर का वह बाहर से ध्यान रख रही है आने वाले वक्त में उसे अंदरूनी मजबूती की ज्यादा जरूरत होगी। यदि मां पहले से ही योग करती आ रही है तो घबराने की कोई बात नहीं क्योंकि योग करने से प्रेगनेंसी के दौरान शरीर में बनने वाली दिक्कतें व बीमारियां नहीं बनती और पूरी प्रेगनेंसी बहुत आराम से निकल जाती है। प्रेग्नेंसी के समय ऐसी बहुत सी बीमारियां व परेशानियां है जिनसे महिलाएं संघर्ष करती है।
1. स्तनों का आकार बढ़ने लगता है-शरीर में हार्मोन बदलाव के कारण दूध नलिकाएं तेजी से बढ़ने लगती है ताकि बच्चे के लिए समय आने पर दूर बन सके।
2. फेफड़े सिकुड़ जाते हैं- दूसरे तिमाही से फेफड़े सिकुडने शुरू हो जाते हैं जिसका कारण होता है बढ़ता गर्भाशय। यही समय होता है जब एक गर्भवती महिला को सांस लेने में दिक्कत शुरू होती है।
3. डायाफाम दब जाता है- टायफाम सिकुड़ने के कारण भी फेफड़े अच्छे से खुल नहीं पातें जिसकी वजह से सांस पूरा व लंबा नहीं खीच पाती महिलाएं।
4. पेट दबकर छोटा हो जाता है- गर्भवती महिलाएं कभी अच्छे से थाली भर भोजन नहीं कर पाती क्योंकि उनका पेट सिकुड़ जाता है।
5. लीवर पर दबाव पड़ता है- पजैसे जैसे गर्माशय बढ़ता है वैसे-वैसे लीवर पर अन्य अंगों का दबाव भी बढ़ता है। ऐसे में मां को लिवर कमजोरी की शिकायत हो सकती है। जिससे फैटी लीवर जैसी बीमारियां बन सकती है।
6. आते स्थानांतरित हो जाती है-गर्भावस्था के दौरान बच्चे को समायोजित करने के लिए आंते अपनी जगह से हिल जाती हैं।
7. गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय का आकार सामान्य से चार गुना बढ़ जाता है और स्नायुबंधन में खिचाव के कारण असुविधा होती है।
8. बच्चों के सिर के कारण मूत्राशय पर दबाव के कारण मन को दिन में कई बार टॉयलेट जाना पड़ता है।
9. जैसे-जैसे प्रसव करीध आता है योनी की दीवारें नरम और फैलने योग्य हो जाती है।
गर्भावस्था के दौरान उठते-बैठते, खड़े होते या सोते समय सही मुद्दा का अभ्यास करना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सीधे रीढ़ की हड्डी पर प्रभाव डाल सकता है। शरीर का सही पोस्चर आपको कई दर्दी से मुक्त रखेगा। अच्छे शारीरिक पोस्चर के सिद्धांत का समर्थन करने के कई कारण है। यह मांसपेशियों और जोडों पर तनाव को कम करके दर्द और चोटों को रोकने में मदद करता है। रीढ़ की हड्डी सीधी हो जाती है और आप लंबे दिखते हैं। आप गहरी सांस लेने में सक्षम होंगे। शरीर का उचित संरेखण शरीर के संतुलन और समन्वय को बढ़ाने में मदद करता है।
प्रेग्नेंसी के समय कौन सा योगिक अभ्यास करने से आप अपने पोस्टर को ठीक रख सकते हैं?गर्भावस्था के दौरान बैठते, खड़े होते और सोते समय सचेत रहना महत्वपूर्ण है। कुछ पोस्चर का ध्यान रखकर गर्भावस्था काल को सुखद बना सकते हैं पीसे-
1. जब भी बैठे तो अपने कंधे को पीछे खीचे और अपनी पीठ सीधी रखें। सुनिश्चित करें कि आप अपने नितंबों को कुर्सी के पिछले हिस्से से चिपकाएं।
2. दोनों पैरों को फर्श पर समान रूप से रखें ताकि आपका वजन अपके नितंबों पर समान रूप से वितरित हो सके।
3. ऑफिस में काम कर रहे हैं तो रक्त प्रवाह को आसान बनाने के लिए अपने पैरों को सहारा देने के लिए थे टेबल के नीचे एक स्टूल रखें यदि घर पर हो तो बेड पर लेट कर दीवार का सहारा लें और कुछ देर पैरों को दीवार से दिका दें।4. हमेशा सीधे खड़े रहे और अपने कंधों को स्वाभाविक रूप से नीचे झुकने दें।
5. अपने पैरों को कंधे की दूरी पर रखें और शरीर के वजन को अपने पैरों पर समान रूप से फैलने दें। 6. अपनी पीठ के बल लेटने के बजाय हमेशा करवट लेकर लेटे क्योंकि इससे गहरी सांस लेने में मदद मिलेगी।
सबसे अच्छा निर्णय होगा अगर आप किसी प्री-नेटल योग कक्षा में जाकर योगाभ्यास व प्राणायाम करें ताकि आपका शरीर इन बदलाव के लिए तैयार हो सके और बीमारियों का बनना रोक सके। इन कक्षाओं में गर्भवती महिलाएं योग व ध्यान से अपने होने वाले बच्ची में भी गर्भ संस्कार की शुरुआत करेंगी और बच्चा स्वस्थ व सुंदर पैदा होगा।
गर्भावस्था के दौरान करने वाले योग व सावधानियां
1. यदि आप गर्भावस्था के शुरुआती महीने में हैं तो ऐसे आसन ना करें जो मुश्किल हो और पेट के निचले हिस्से पर अधिक दबाव डालते हो।
2. गर्भावस्था के पहले 3 महीनों के दौरान खड़े रहने वाले कुछ योगासन करने चाहिए क्योंकि यह पैरों की मांसपेशियों को मजबूत बनाते हैं और शरीर में अच्छे से रक्त का सचारण करते हैं। ऊर्जा प्रदान करते हैं और पैरों में होने वाली अकड़न व सूजन को मी दूर करते हैं।
3. गर्भावस्था के बीच तीन महीनों के दौरान थका देने वाले ज्यादा जटिल आसन नहीं करने चाहिए।
4. बीच के तीन महीनों के दौरान प्राणायाम व यान पर ज्यादा समय लगाना चाहिए।
5. गर्भावस्था के 10 में से 14 में हफ्ते तक कोई भी योगासन नहीं करना चाहिए क्योंकि यह समय गर्भावस्था का सबसे महत्वपूर्ण समय होता है।
6. गर्भावस्था में अपने शरीर को फुर्तीला बनाए रखें, हल्के-फुल्के काम करने चाहिए व टहलना चाहिए। 7. गर्भावस्था के दौरान उज्जायी प्रणायाम, भ्रामरी प्राणायाम, योग निद्रा प्राणायाम, योनि मुद्रा एवं नाड़ी शोधन प्राणायाम करना लाभकारी होता है। साथ ही साथ सुखासन, ताडासन, कोणासन, शवासन व वीरभद्रासन आसान लाभकारी माना जाता है।
नियमित दिनचर्या, प्राकृतिक जीवन, प्राकृतिक स्रोत के आहार, योग व प्राणायाम से माँ बनना आसान हो जाता है।

प्राकृतिक चिकित्सक व योगा प्रशिक्षक